IMPORTANCE OF TEMPLES

भारतीय संस्कृति में मंदिर केवल ईश्वर की प्रतिमा की स्थापना का स्थान नहीं है, बल्कि यह दिव्य ऊर्जा, आध्यात्मिक साधना और समाजिक एकता का केंद्र भी है। वेदों, उपनिषदों, पुराणों और स्मृतिग्रन्थों में मंदिर की महत्ता का उल्लेख मिलता है। मंदिर वह स्थान है जहाँ मानव अपने अहंकार को त्यागकर परमात्मा के समक्ष समर्पित होता है।

१. वेदों में देवालय का महत्व

वेदों में देवताओं की उपासना हेतु वेदिक यज्ञशालाओं और देवायतनों का उल्लेख मिलता है। अथर्ववेद में कहा गया है कि देवस्थान की पवित्रता मनुष्य को दिव्य तेज और आत्मबल प्रदान करती है—
"देवालयं प्रविशन्तु देवाः।
देवालयं पावनं भवतु।"

(अथर्ववेद)
अर्थात्, देवता देवालय में ही प्रतिष्ठित होते हैं और वही स्थान सम्पूर्ण जगत् को पवित्र करने की क्षमता रखता है।


२. उपनिषदों का दृष्टिकोण

छांदोग्य और तैत्तिरीय उपनिषदों में कहा गया है कि सम्पूर्ण जगत ही ईश्वर का मंदिर है, परंतु मूर्तिमान देवालय मनुष्य को ईश्वर के साक्षात्कार का सरल माध्यम प्रदान करता है।
"ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।"
(ईशोपनिषद् १)
इस मंत्र का भाव है कि सारा संसार ईश्वर से व्याप्त है, और मंदिर उसका जीवंत प्रतीक बनकर भक्त को याद दिलाता है कि भगवान सदा निकट ही हैं।


३. स्मृतियों और धर्मशास्त्रों में मंदिर

मनुस्मृति और याज्ञवल्क्यस्मृति में मंदिर की सेवा, उसकी शुचिता और पूजा की महत्ता बताई गई है।
"देवालये तु यः कुर्यात् सेवाṁ शुश्रूषणं नृप।
स गच्छति परां सिद्धिं मोक्षं चाप्नोति निश्चितम्॥"

(याज्ञवल्क्यस्मृति)
अर्थात् जो मनुष्य मंदिर की सेवा करता है, वह उच्चतम सिद्धि और मोक्ष को प्राप्त करता है।


४. पुराणों में मंदिर की महिमा
विविध पुराणों में मंदिर-निर्माण और उसकी उपासना को अत्यधिक पुण्यदायी बताया गया है। स्कन्दपुराण में कहा गया है—
"अर्चायां हरये पूजां शुद्धभावसमन्विताम्।
कृत्वा तुष्यति गोविन्दः प्रीत्यालोक्य जनार्दनः॥"

अर्थात् जब कोई भक्त शुद्ध भाव से मंदिर में भगवान की पूजा करता है, तो भगवान प्रसन्न होकर कृपा करते हैं।


५. समाज और संस्कृति में मंदिर की भूमिका

मंदिर केवल पूजा का स्थल ही नहीं, बल्कि यह भारतीय समाज में शिक्षा, कला, संगीत और नृत्य का भी केंद्र रहा है। प्राचीनकाल में गुरुकुल और सांस्कृतिक गतिविधियाँ अक्सर मंदिरों से ही जुड़ी रहती थीं।

वेदों और शास्त्रों के अनुसार मंदिर परमात्मा और जीवात्मा के मिलन का सेतु है। यह साधक को भौतिक जगत से परे आत्मिक शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है। मंदिर की सेवा, पूजा और दर्शन से मनुष्य पवित्र होता है और उसका जीवन सार्थक बनता है।

"मन्दिरं हि मनः शुद्धेः साधनं मोक्षसाधनम्।
तत्रैव लभ्यते भक्त्या परमं ब्रह्म नित्यशः॥"

मंदिरों का महत्व : वेद एवं हिन्दू शास्त्रों के आलोक में

॥ राधे राधे ॥ जय श्री कृष्ण आप सभी को। जैसा की आप सभी ने ऊपर लिखे गए लेख मे पढ़ा होगा की शास्त्रों और वेदों के अनुसार मंदिरों का कितना महत्व है।हमारे गुरुकुल मे भी ये मंदिर प्रांगण है जहां निरंतर रूप से वेद की कक्षाएँ संचालित होती हैं, निरंतर वेद पाठ चलते रहता है साथ हीं साथ मंगला आरती संध्याकाल भजन पाठ गायन नामजप आदि विद्यार्थियों द्वारा की जाती है। मंदिर का वातावरण इतना शुद्ध है की यहाँ आने के बाद हम खुद को स्वयं भगवान के निकट महसूस करते हैं और सांसारिक सभी चिंताओं से खुद को मुक्त पाते हैं। मंदिर मे समय समय से हमारे पूज्य स्वामी अमृतानन्द जी महराज द्वारा सत्संग एवं कीर्तन का संचालन भी निरंतर रूप से किया जाता है। मंदिर प्रांगण मे ठाकुर जी साक्षात श्री रमण बिहारी जी के रूप मे बिराज रहे हैं।संग मे हमारी प्रमेश्वरी श्री राधा रानी भी बिराज रही हैं। बाल रूप मे छोटे से लड्डू गोपाल जी भी बिराज रहे हैं और साथ मे श्री लक्ष्मी और गणेश जी भी अपने स्वरूप मे विराजमान हैं।
ठाकुर जी और राधे रानी की इतनी मनमोहक छवि है की देख के ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम भगवान के समक्ष साक्षात खड़े हों। हमारे सामने भगवान साक्षात दर्शन दे रहे हैं।कुच्छ साधक अपना अनुभव बताते हैं की ठाकुर जी और राधे रानी का एक बार एकांत मे ऐसा दर्शन हुआ की मानो ठाकुर जी कोई लीला रच रहें हो और साक्षात ठाकुर जी राधे रानी के संग उस साधक के भीतर प्रवेश कर रहें हो। बाद मे वो साधक अपना अनुभव बताते हैं की ठाकुर जी के ऐसे दर्शन हुए की फिर उनकी छवि और राधा रानी की छवि कभी नेत्रों से ओझल ही नहीं हुई सदा के लिए उनके नेत्रों मे समा गई।
मंदिर प्रांगण का माहौल इतना शांत और सौम्य है की वहाँ जाके दर्शन करने पे ऐसा अनुभाव होता है की साक्षात ठाकुर जी से संवाद हो रहा है । हम सबके जीवन का वास्तविक लक्ष्य केवल और केवल भगवद प्राप्ति हीं है। बड़े से बड़ा व्यक्ति बस संसार की माया के कारण हीं बड़ा प्रतीत हो रहा है वास्तव मे संसार मे वहीं बड़ा है जो भगवान का भक्त है । सबसे अधिक धन उसी के पास है जिसने सबसे ज्यादा भजन भक्ति या साधन की है। भगवान स्वयं हमे बुला लेते हैं जब कृपया होती है तो नहीं तो हमारे समक्ष परिक्षतितियाँ ऐसी आती हैं की हम खुद भगवान के पास उनसे मिलने चले जाते हैं। इसलिए आप सबसे निवेदन है भगवान के साक्षात दर्शन हेतु एक बार इस प्रांगण मे अवश्य पधारें। ये निमंत्रण लिखने का सौहाज्ञा मुझे प्राप्त हो रहा लेकिन मै बस एक तुच्छ माध्यम हूँ जिसके जरिए भगवान स्वयं आपके ऊपर कृपया करने के लिए आपको इस प्रांगण मे बुला रहे हैं।
धन्यवाद, राधे राधे जय श्री कृष्ण

॥ Radhe Radhe ॥ Jai Shri Krishna ॥

Dear Devotees,As described in the Vedas and the scriptures, a temple is not merely a place of worship, but a sacred gateway where the soul meets the Supreme. Following this tradition, in our Gurukul Temple Courtyard, Vedic classes are conducted regularly. Continuous recitation of the Vedas, Mangala Aarti, evening bhajans, kirtan, and chanting of the divine name are performed by the students with devotion.The atmosphere here is so pure and divine that as soon as one enters, they feel themselves very close to the Lord.
Worldly worries seem to dissolve, and the heart is filled only with peace and bliss of the Supreme.Our revered Swami Amritanand Ji Maharaj frequently conducts satsangs, discourses, and kirtans in the temple. In the sanctum, Thakur Ji Himself is present as Shri Raman Bihari Ji, accompanied by our Divine Mother Shri Radha Rani, the playful child form of Laddu Gopal Ji, and also Shri Lakshmi Ji and Shri Ganesh Ji, all blessing the devotees through their enchanting presence.Devotees have shared that in moments of solitude, the darshan of Thakur Ji and Radha Rani feels as if the Lord is revealing His divine pastimes. Some devotees even experienced the Lord entering their very being, leaving their divine forms eternally imprinted upon their eyes and heart.
The serene and gentle aura of the temple makes one feel as if engaged in a direct dialogue with the Lord. Truly, the ultimate goal of life is attaining God-realization. A person immersed in worldly illusion may appear great, but in reality, true greatness belongs only to the devotee of the Lord. The highest wealth is the wealth of devotion and spiritual practice.Therefore, we humbly invite all devotees to visit this sacred temple courtyard at least once and receive the fortune of having the divine darshan of Thakur Ji and Radha Rani. Though I have been given the opportunity to write this invitation, in truth, it is Thakur Ji and Radha Rani themselves who, out of compassion, are calling you here.Awaiting your presence—
The Gurukul Family

॥ Radhe Radhe ॥ Jai Shri Krishna ॥

DARSHAN TIMING:

दर्शन का समय :

शयन भोग / DINNER : 7:45 p.m.

कीर्तन / KIRTAN : 7:00 p.m.

संध्याकालिन संध्या / EVENING PRAYER : 6:00 p.m.

शयन विश्राम / REST : 12:00 to 4:00 p.m

राजभोग /RAAJBHOG : 12 :00 p.m.

बालभोग / BAALBHOG : 7:00 a.m.

संध्या / SANDHYA : 5:30 a.m.

मंगला / MANGLA : 4:00 a.m.

शयन दर्शन / RESTING TIME : 9:00 p.m.

। आप सभी जरूर पधारें ।
॥ जय श्री कृष्ण , राधे राधे ॥